Deepti Jeevan : पैरालंपिक में मेडल जीत रचा इतिहास । समय-समय की बात है। एक वक्त था जब दीप्ति जीवनजी को उनके ही गांव वाले मेंटल मंकी कहकर चिढ़ाते थे, लेकिन गर्व कर रहे होंगे। इस महिला एथलीट ने पैरालंपिक में ब्रॉन्ज मेडल जीता और देश को गौरवान्वित किया। आइए जानते हैं सूर्य ग्रहण के दिन पैदा हुई इस एथलीट की पूरी कहानी…
नई दिल्लीः वह सूर्य ग्रहण के दौरान पैदा हुई थी और जन्म के समय उसका सिर बहुत छोटा था, साथ ही होंठ और नाक थोड़े असामान्य थे। उसे गांव वाले चिढ़ाते थे। पिछी (मेंटल)- कोठी (मंकी) कहकर नाक में दम कर देते थे। वह घर आते ही फूट-फूटकर रोती। छोटी थी। उसे संभालने के लिए हम पूरी कोशिश करते, लेकिन बच्ची तो बच्ची होती है। लोग हमें उसे अनाथालय भेजने के लिए कहते थे। आज उसे दूर देश में पैरालंपिक मेडल जीतते देखना यह साबित करता है कि वह वास्तव में एक खास लड़की है… जी हां यह कहानी है दीप्ति जीवनजी की और इस बारे में दीप्ति की मां जीवनजी ने ये बातें बताईं। पेरिस पैरालिंपिक 2024 ने दुनिया को दिखा दिया है कि अगर दृढ़ इच्छाशक्ति हो तो कुछ भी हासिल किया जा सकता है। चुनौतियों के बावजूद एथलीट्स ने सफलता की बुलंदियों को छुआ है। भारत की दीप्ति जीवनजी उन प्रेरणादायी एथलीटों में से हैं, जिनका सफर चुनौतियों से भरा रहा, लेकिन उन्होंने कभी हार नहीं मानी। दीप्ति जीवनजी ने पेरिस पैरालिंपिक 2024 में महिलाओं की 400 मीटर टी20 स्पर्धा के फाइनल में कांस्य पदक जीतकर भारत के लिए 16वां पदक दिलाया। पैरा-एथलीट ने यह दौड़ 55.82 सेकंड में पूरी की।
दीप्ति जीवनजी ने इससे पहले जापान के कोबे में विश्व एथलेटिक्स पैरा चैंपियनशिप में भारत के लिए पहला स्वर्ण पदक जीता था। वह आंध्र प्रदेश के वारंगल जिले के कल्लेडा गांव की रहने वाली हैं। उनके माता-पिता जीवनजी यादगिरी और जीवनजी धनलक्ष्मी ने तब याद किया था कि कैसे उनकी बेटी को बड़े होने के दौरान ताने सहने पड़ते थे। इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के अनुसार, दीप्ति बौद्धिक विकलांगता (Intellectual Disability) के साथ पैदा हुई थीं।
वह बताती हैं- जब मेरे पति के पिता का निधन हुआ तो हमें अपना खर्च चलाने के लिए खेत बेचना पड़ा। मेरे पति प्रतिदिन 100 या 150 रुपये कमाते थे, इसलिए ऐसे दिन भी आए जब मुझे अपने परिवार का खर्च चलाने के लिए काम करना पड़ा, जिसमें दीप्ति की छोटी बहन अमूल्या भी शामिल थी। दीप्ति हमेशा शांत रहने वाली बच्ची थी और बहुत कम बोलती थी। लेकिन जब गांव के बच्चे उसे चिढ़ाते थे, तो वह घर आकर रोती थी। इसलिए मैं उसके लिए मीठे चावल या कभी-कभी चिकन बनाती थी और इसी से उसे खुशी मिलती थी। अपनी बेटी की बड़ी उपलब्धि के बाद जीवनजी के पिता यादगिरी भावुक हो गए। उन्होंने कहा- भले ही यह हम सभी के लिए एक बड़ा दिन है, लेकिन मैं काम से छुट्टी नहीं ले सकता था। यही मेरी रोजी-रोटी है और पूरे दिन मैं दीप्ति के पेरिस में पदक जीतने के बारे में सोचता रहा और ड्राइवर एल्फर से कहता रहा कि वह अन्य दोस्तों और उनके परिवारों को दीप्ति के पदक का जश्न मनाने के लिए बुलाए। उसने हमेशा हमें खुशी दी है और यह पदक भी हमारे लिए बहुत मायने रखेगा।
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Posted By Sandeep Patel