Indrakshi Shakti Peeth, Sri Lanka : माता सती के शक्तिपीठ सिर्फ भारत में ही नहीं बल्कि विदेशों में भी हैं। आज हम आपको ए ऐसे शक्तिपीठ के बारे में बताने जा रहे हैं। जो पानी के बीचों बीच एक छोटे से टापू पर स्थित है। कहा जाता है कि यहां माता सती की पायल गिरी थी।
Indrakshi Shakti Peeth, Sri Lanka: हिंदू धर्म की मान्यताओं के अनुसार, जहां-जहां देवी सती के शरीर के अंग गिरे, वहां शक्तिपीठ स्थापित हो गए। देवी पुराण में कुल 51 शक्तिपीठ बताया गए हैं, लेकिन दुनिया भर में 51 से भी ज्यादा शक्तिपीठ हैं। दुनियाभर में मौजूद शक्तिपीठों का अपना अलग ही महत्व हैं।
Indrakshi Shakti Peeth, Sri Lanka: हिंदू धर्म की मान्यताओं के अनुसार, जहां-जहां देवी सती के शरीर के अंग गिरे, वहां शक्तिपीठ स्थापित हो गए। देवी पुराण में कुल 51 शक्तिपीठ बताया गए हैं, लेकिन दुनिया भर में 51 से भी ज्यादा शक्तिपीठ हैं। दुनियाभर में मौजूद इन शक्तिपीठों का अपना अलग महत्व और मान्यता है, जिसके कारण लोगों के बीच उस मंदिर की आस्था और भी बढ़ जाती है। ऐसा ही एक मंदिर हैं जिसके बारे में यह कहा जाता है कि यहां मां सती की पायल गिरी थी इसके अलावा यहीं पर भगवान राम ने भी पूजा की थी। जिसके बाद उन्होंने रावण से युद्ध कर जीत हासिल की थी।
कहां है यह शक्तिपीठ?
मां सती का यह शक्तिपीठ श्रीलंका में है। जाफना के नल्लूर में स्थित इस मंदिर के बारे में माना जाता है यहां मां सती का पायल गिरी थी इसलिए यह मंदिर इन्द्राक्षी शक्तिपीठ के नाम से जाना जाता है।
भगवान राम और रावण ने की थी पूजा
इस मंदिर में भगवान राम और देवराज इंद्र ने भी यहां पर देवी की पूजा की थी। रावण के बारे में माना जाता है कि वो शिव और शक्ति का बड़ा उपासक था और उसने भी युद्ध से पहले यहां शक्ति पूजा की थी।
श्रीलंका के अलावा यहां भी है शक्तिपीठ
माता सती के शक्तिपीठ सिर्फ श्रीलंका में ही नहीं बल्कि इन देशों में भी मौजूद हैं जिसमें से नेपाल में दो शक्तिपीठ है जिसमें पहला गुह्येश्वरी शक्तिपीठ और दूसरा दंतकाली शक्तिपीठ है। पाकिस्तान में एक हिंगलाज शक्तिपीठ है। बांग्लादेश में चार शक्तिपीठ हैं। सुगंधा शक्तिपीठ, करतोयाघाट शक्तिपीठ, चट्टल शक्तिपीठ, यशोर शक्तिपीठ।
क्या है शक्तिपीठ बनने की कहानी?
देवी के शक्तिपीठ बनने के पीछे एक पौराणिक
कथा है जिसके अनुसार माता सती के पिता दक्ष
प्रजापति ने कनखल नाम का स्थान जिसे हरिद्वार
के नाम से जाना जाता है वहां एक महायज्ञ किया।
उस यज्ञ में ब्रह्मा, विष्णु, इंद्र समेत सभी देवी
देवताओं को बुलाया गया लेकिन भगवान शिव को
आमंत्रित नहीं किया गया। माता सती को इसकी
जानकारी मिली। पति को यज्ञ में आमंत्रित न करने
का जवाब जानने के लिए वो पिता दक्ष के पास
पहुंची। माता सती ने अपने पिता से जब यह
सवाल किया तो उन्होंने भगवान शिव के लिए
अपशब्द कहे। उनका अपमान किया। माता सती
अपमान से क्षुब्ध होकर उसी यज्ञ के अग्निकुंड में
अपने प्राणों की आहुति दे दी।
भगवान शिव को इसी जानकारी मिलने पर वो क्रोधित हो उठे और उनका तीसरा नेत्र खुल गया। अपशब्द कहे। उनका अपमान किया। माता सती अपमान से क्षुब्ध होकर उसी यज्ञ के अग्निकुंड में अपने प्राणों की आहुति दे दी।
भगवान शिव को इसी जानकारी मिलने पर वो क्रोधित हो उठे और उनका तीसरा नेत्र खुल गया। उन्होंने माता सती का शरीर उठाया और कंधे पर रखा। भगवान शिव का तांडव जारी रहा। उन्होंने कैलाश की ओर रुख किया. पृथ्वी पर बढ़ते प्रलय का खतरा देखते हुए भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से माता सती के शरीर को खंड-खड करना शुरू कर दिया। इस तरह उनके शरीर के अलग-अलग हिस्से अलग-अलग स्थानों पर गिरे। ऐसा 51 बार हुआ, इस तरह 51 शक्तिपीठों की स्थापना हुई।
Disclaimer: इस खबर में दी गई जानकारी धार्मिक मान्यताओं पर आधारित है. https://timesandesh.com इसकी पुष्टि नहीं करता है.
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Post By Sandeep Patel